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संपादकीय: बदलाव के दौर में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति- राज शुक्ला

आदर्श हिमाचल ब्यूरो

शिमला। पिछले दस वर्षों में, मोदी सरकार ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में बदलाव के लिए एक मजबूत आधारशिला रखी है। हम आजादी के बाद से रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के सबसे दूरगामी सुधारों को देख रहे हैं। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती की विशालता (चीन) और जटिलता (तकनीकी नवाचार, जो अब तक के इतिहास में दर्ज युद्ध के चरित्र में मूलभूत परिवर्तन ला रहा है) को देखते हुए, बहुत कुछ हासिल किया गया है, फिर भी कई बदलाव किए जाने बाकी हैं। इसलिए, वस्तुस्थिति की सही जानकारी उपयोगी साबित हो सकती है।

प्रधानमंत्री ने दिसंबर 2015 में संयुक्त कमांडरों के अपने संबोधन में स्वयं वृहत रणनीतिक रूपरेखा की आधारशिला रखी थी। यह संबोधन अपने विज़न की व्यापकता और उद्देश्य की स्पष्टता की दृष्टि से उल्लेखनीय था- इसने हमारे विकासवादी रणनीतिक दृष्टिकोण, संरचनात्मक सुधार, तकनीकी सुधार, प्रणालीगत परिवर्तन तथा शक्ति प्रक्षेपण को शामिल करने के लिए संस्थागत और क्षमता उन्नयन से संबंधित रोडमैप प्रस्तुत किया। उन्होंने सिद्धांतों और रणनीतियों में व्यापक सुधार का आग्रह किया, हालांकि यह हमारी अपनी प्रतिभा में निहित है और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली के माध्यम से परिवर्तन लाने के लिए विचार नेतृत्व की आवश्यकता भी है। रूपरेखा इतनी महत्वाकांक्षी थी कि कार्यान्वयन के बारे में गहरी शंकाएं थीं– क्योंकिअतीत में ऐसी विभिन्न पहलें बेकार साबित हुई थीं।

हालांकिइस बार सुधार, पूरी नियमितता और दृढ़ संकल्प के साथ सटीक किस्तों में सामने आए हैं।यह सब एक अग्रणी कदम के रूप मेंसीडीएस/डीएमए के गठन के साथ शुरू हुआ,जो अमेरिकी बैरी गोल्डवाटर निकोल्स की तुलना में अवधारणा व व्यापकता में और भी अधिक शक्तिशाली था। इस कदम का महत्व, उन संरचनात्मक सुधारों से कहीं आगे था, जो स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे: इसने भारत के नागरिक-सैन्य संबंध (सीएमआर) की व्यवस्था की एक बड़ी विसंगति को ठीक किया, जिससे रक्षा सेवाओं को रणनीतिक सैन्य मामलों में उनकी वैध भूमिका वापस मिल गई। यह उन्हें अपने बारे में सोचने, संकल्पना करने, संचालन करने और क्रियान्वित करने की अनुमति देता है, यहां तक कि उन्हें प्रोत्साहित भी करता है, ताकि वे, निश्चित रूप से मजबूत राजनीतिक निगरानी के तहत, राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था में अति-आवश्यक बदलाव ला सकें। एकदम अभूतपूर्व।

हमने देश के रणनीतिक दृष्टिकोण में एक नई स्थिति देखी है, जिसके प्रतीक हैं- बालाकोट और कैलाश रेंज ऑपरेशन। एक त्वरित हमले के जरिये हमने अपने विरोधियों को संकेत दे दिया, जिसे व्यक्त करने में कठिन कूटनीति को महीनों लग जाते: किसी भी प्रकार के दुस्साहस के लिए कीमत चुकानी होगी। मोदी युग में रक्षा भी विदेश नीति की छाया से उबर चुकी है- बदलते रणनीतिक दृष्टिकोण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण। यह इस तथ्य को स्वीकार करता है कि बल और कूटनीति, विदेश नीति रूपी सिक्के के दो समान रूप से प्रमुख पहलू हैं- उनकी विशेषताओं को भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए एक साथ लागू किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने इसे स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है, ‘शांति की चाह और शक्ति की राह, भिन्न नहीं हैं।’ शांति का मार्ग और शक्ति का मार्ग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

उत्तरी भाग में (चीन के साथ एलएसी) एक बड़े सैन्य पुनर्संतुलन के परिणामस्वरूप, अब हमारी रक्षा व्यवस्था खतरे का अधिक सटीक प्रतिबिंब है। आईएसआर, बल स्तर, मशीनीकृत बल, तोपखाने, बल गुणक, रिज़र्व, प्रौद्योगिकी उन्नयन और प्रतिक्रिया विकल्पों के संदर्भ में हमारी प्रतिरोधक क्षमता को काफी मजबूत किया गया है।

रक्षा पहल में आत्मनिर्भरता के परिचालक, आत्मनिर्भरता के महत्वपूर्ण उद्देश्य से कहीं आगे जाते हैं। यह नवाचार, ऊर्जा और उद्यम की एक नई संस्कृति की शुरुआत करने के लिए एक महत्वाकांक्षी उपक्रम है, जो भविष्य के लिए रक्षा क्षमता और सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला के निर्माण के लिए; विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं व्यापार और उद्यम की दुनिया से प्रतिभाओं को भारत आने के लिए आमंत्रित करता है। आईडेक्स द्वारा सक्षम किए गए 114एआई, तीसरा आईटेक और न्यू स्पेस जैसे भारतीय स्टार्ट-अप ने भविष्य के ‘राष्ट्रीय चैंपियन’ बनने की क्षमता का प्रदर्शन किया है। एलन मस्क ने दिखाया है कि अंतरिक्ष जैसे उच्च स्तरीय राष्ट्रीय सुरक्षा उपक्रमों में भी, जो कभी देश के विषय हुआ करते थे, वे अब तेजी से कंपनी के कार्य होते जा रहे हैं। यूक्रेन में, सरकार द्वारा वित्त पोषित प्रयोगशालाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रौद्योगिकियों के बजाय, वाणिज्यिक स्तर पर खरीद-के-साथ, उपयोग-के-लिए-तैयार प्रौद्योगिकियों द्वारा युद्ध को अधिक सशक्त बनाया जा रहा है। इसलिएजिस सोच और गति के साथ निजी क्षेत्र की दक्षताओं/स्टार्ट-अप ऊर्जा को क्षमता निर्माण और युद्ध में एकीकृत किया जाएगावही भविष्य की भारतीय सेना की शक्ति का निर्धारण करेगी। इसी संदर्भ में, यह देखा जाना चाहिए कि ओएफबी का निगमीकरण लंबे समय से लंबित था तथा डीआरडीओ में तेजी से सुधार हुए हैं। कुल मिलाकर, निरंतर पहल एक वैश्विक नवाचार केंद्र के साथ-साथ एक रक्षा महाशक्ति बनने से जुड़े भारत के संकल्प की अभिव्यक्ति है- यदि दुनिया के शीर्ष बीस रक्षा कॉर्पोरेट कंपनियों में से सात चीनी हैं, तो भारत की भी इसी तरह की आकांक्षाएं क्यों नहीं होनी चाहिए?

रक्षा सेवाओं ने थिएटर कमांड के विवादास्पद मुद्दे पर एक व्यापक सहमति विकसित की है, और अब कार्यान्वयन की बारीकियों का समाधान कर रहे हैं- इसलिए थिएटर कमांड जल्द ही होंगे। एक संयुक्त संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि बहु-कार्यक्षेत्रीय क्षमताओं के साथ एआई सक्षम सेना की नींव रखने के लिए डेटा का उपयोग करने, डिजिटल पाइपलाइनों की संरचना करने और प्रौद्योगिकियों को अपनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह एक बड़ी चुनौती है- युद्ध के सभी ग्रिडों में व्यापक भाषा मॉडल (एलएलएम), गणना क्षमता, क्लाउड, चेहरे की पहचान सॉफ्टवेयर, कोडर और एल्गोरिदम के विकास के लिए अत्यधिक रचनात्मकता की आवश्यकता होगी- हालांकि, यह चीन के समाधान के लिए हमारा गुप्त उपाय होगा।

चीनी सैन्य शक्ति से मुकाबले से जुड़ा समाधान केवल बढ़े हुए खर्च से संबंधित नहीं है। चीन का  असममितनिवारणएक विशिष्ट संभावना है। चीन और अमेरिका के बीच रक्षा खर्च में अंतर वही है, जो भारत और चीन के बीच है। हालांकि, निवारक प्रभाव के संदर्भ में, चीन बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और संभवतः इसका कारण है- पेंटागन में पैदा हो रही ‘अन्यत्र में क्षेत्रों में चिंता बढ़ने के जरिए’। गहन सुधारों, संगठनात्मक पुनर्गठन, तकनीकी नवाचार तथा बिना लागत बढ़ाए कल्पनाशील रणनीति व परिणामों के मूल्यांकन के माध्यम से हम बहुत कुछ कर सकते हैं। यदि नवप्रवर्तन की भावना को वास्तव में प्रदर्शित करना है, तो हमें नौकरशाही पर अधिक विश्वास करने की आवश्यकता होगी (न केवल राजनीतिक नेतृत्व, बल्कि नागरिक और सैन्य नौकरशाही के नेतृत्व द्वारा)- नियमों और प्रक्रियाओं को तेजी से कम करना होगा, रक्षा उद्यम की हर शाखा में नवाचार केंद्र बनाने होंगे, जोखिम लेने की संस्कृति को प्रोत्साहित करना होगा, विफलताओं को वित्त पोषित करना होगा और उद्यमशीलता के आपसी संबंध को उनके प्राकृतिक प्रवाह के लिए अनुमति देनी होगी।

लोगों द्वारा विचार करने और राष्ट्रीय सुरक्षा गाथा को आकार देने के संदर्भ में, आज रक्षा सेवाओं के लिए कहीं अधिक अवसर हैं। ओआरएफ संचालित, वार्षिक रायसीना संवाद, विदेश नीति, भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र में गहन बातचीत के स्रोत के रूप में विकसित हुआ है। हाल ही में, भारतीय सेना ने पहले भारत-प्रशांत सेना प्रमुखों के सम्मेलन का आयोजन किया, जो ब्राजील, टोंगा, यूके, सऊदी अरब, थाईलैंड, इंडोनेशिया और यूएसए जैसे भौगोलिक रूप से विविध देशों के सत्रह सेनाओं के प्रमुखों और बारह प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुखों की एक वैश्विक सभा थी। इसके तुरंत बाद, चाणक्य रक्षा संवाद और वैश्विक प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन ने इस विचार-चक्र को पूरा किया। नई दिल्ली अब राष्ट्रीय सुरक्षा में गहनविचारशीलसर्वांगीणव्यापक विचार के वैश्विक केंद्र के रूप में सामने आ रही है।

नागरिक-सैन्य तालमेल के मंत्र को अपनाना, वर्तमान बदलाव की एक और साहसिक पहल है। राष्ट्रीय सुरक्षा के विशिष्ट क्षेत्र इतने जटिल होते जा रहे हैं कि भविष्य की सैन्य क्षमता निर्माण को केवल उपकरण अधिग्रहण नहीं, बल्कि प्रतिभा अधिग्रहण की ओर ले जाने की आवश्यकता होगी। भारत में एक ऐतिहासिक शुरुआत हुई है। हमें इन परिवर्तनों को तेज़ करने की आवश्यकता है।

हालांकि बदलाव की इमारत के पुनर्निर्माण के क्रम में कई अवरोधों को हटा दिया गया है, फिर भी महत्वपूर्ण कार्य किये जाने शेष हैं। चीन उन शेष कार्यों में पहला है। चीन की चुनौती को चिंताजनक बनाने वाली बात यह है कि यह जटिल, परिष्कृत और रणनीतिक चालाकी से भरपूर है- यह युद्ध संबंधी पुनर्संतुलन अधिक विस्तृत है: न केवल डब्ल्यूटीसी में क्षमता प्रदर्शन, बल्कि व्यापक प्रौद्योगिकी उन्नयन, डिजिटल युद्ध के प्रति इसका दृढ़ संकल्प तथा रॉकेट और रणनीतिक सहायता बलों जैसी इसकी प्रमुख परियोजनाएं। हमें अपनी रणनीतिक प्रतिरोधक क्षमता में इन कमियों को दूर करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है।

अन्य चुनौतियां भी मौजूद हैं, जैसे दुनिया भर में हाल के संघर्षों के सबकों को समझना और इनका समाधान करना, उदाहरण के रूप में विषमता की शक्ति और सटीकता का जादू। 5 मिलियन डॉलर की लागत वाली हौथी मिसाइलें, 250 मिलियन डॉलर की अमेरिकी हवाई सुरक्षा पर भारी पड़ रही हैं। तातारस्तान की कम लागत वाली शहजाद की हथियार सामग्री सटीकता के साथ यूक्रेन में कहर बरपा रही है। नवाचार चक्र अब छह महीने में वैसे परिणाम दे रहे हैं, जिनके लिए पारंपरिक खरीद चक्र में छह साल लगेंगे।

हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है; यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है। इसलिए, जिस राष्ट्रीय सुरक्षा बदलाव को गति दी गई है, उसे उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की जरूरत है। हालांकि, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को दुनिया के साथ हमारे जुड़ाव का मार्गदर्शक मंत्र बना रहना चाहिए, लेकिन हमें स्वामी विवेकानंद के बुद्धिमान शब्दों पर समान ध्यान देकर जोखिमों को कम करना चाहिए- “दुनिया एक व्यायामशाला है, जहां राष्ट्र खुद को मजबूत बनाने आते हैं।” ‘शक्ति के माध्यम से शांति’ हमारा मूलमंत्र होना चाहिए।   

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