भारत अभी तक ब्यूरो
शिमला। पिछले तीन भारत रत्न वास्तव में भारत के किसानों की उद्यमशीलता की भावना का सम्मान है।भारत रत्न पाने वाली तीनों हस्तियां- दो पूर्व प्रधानमंत्रियों चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव के साथ-साथ हरित क्रांतिके जनकवैज्ञानिक प्रशासक डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन- कृषि के साथ-साथ किसानों के कल्याण सेगहराई से जुड़ी थीं और इसके प्रति व्यक्तिगत रूप से प्रतिबद्ध थीं।स्वामीनाथन का योगदान काफी जाना-माना है, लेकिन उस राजनीतिक अर्थव्यवस्था के संदर्भ को समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जिसमें हरित क्रांति सफल रही थी।यह चरण सिंह ही थे जिन्होंने नेहरू को सोवियत और चीन केतरीके की ‘सामूहिक खेती’के नुकसान से अवगत कराया था।उनका स्पष्ट मानना था कि किसान पूरी तरह से स्वतंत्र खेतिहर हैं और वे ‘लैंड पूलिंग एवं सहकारी खेती’ की किसी भी केंद्रीकृत योजना के सख्त विरोधी हैं।‘लैंड पूलिंग और सहकारी खेती’ की अवधारणासे तत्कालीन योजना आयोग अभिभूत था।
पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शामिल हुआऔर कृषि संबंधी समझौते (एओए) पर हस्ताक्षर किए।इस कदम ने भारत की कृषि को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना दिया। उससे पहले,भारत की नीतिगत व्यवस्था आयात को प्रतिबंधित करने की थी।श्री राव के अधीन, भारत कृषि निर्यात को विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाला एक महत्वपूर्णजरियेके रूप में देखने लगा। एपीडा को बजटीय और संस्थागत समर्थन प्रदान करके, उन्होंने भारतीय कृषि को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में मदद की।हालांकि,कृषिगत वस्तुओं का घरेलू व्यापार प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवस्थाओं के जरिए ही संचालित होता रहा जो खरीद एजेंसियों और एपीएमसी के पंजीकृत व्यापारियों के लिए तो अच्छा था, लेकिन किसानों के लिए नहीं।
लेकिन संभवत: उनके द्वारा किया गया सबसे सार्थक नीतिगत उपाय1994 में छोटे किसानों का कृषि व्यवसाय संघ (एसएफएसी) की स्थापना करना था। इस संगठन को अब कृषि के लिए राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक बाजार की स्थापना का जिम्मा सौंपा गया है। यह सब आठ साल पहले बैसाख प्रथम (14 अप्रैल) को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई एक परिवर्तनकारी पहल की पृष्ठभूमि और संदर्भ प्रदान करता है। यहां संदर्भ- एसएफएसी समर्थित इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) पहल: ‘फिजिटल (फिजिकल प्लस डिजिटल) बाजार’ का है। यह फिजिकल बैकएंड वाला एक सिंगल विंडो पोर्टल है, जो कार्रवाई योग्य जानकारी, भौतिक बुनियादी ढांचा, व्यापार के विकल्प और भुगतानों का इलेक्ट्रॉनिक निपटान प्रदान करता है।
मौजूदा समय में, एसएफएसी की इसी पहल की बदौलत, 10.7 मिलियन किसानों को 23 राज्यों और 4 केंद्र-शासित प्रदेशों के 1389 विनियमित थोक बाजारों में अपने मोबाइल फोन पर अपनी भाषा में लेनदेन करने की स्वतंत्रता, लचीलापन और सुविधा प्राप्त है। राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों द्वारा 1.7 लाख अन्य एकीकृत लाइसेंस जारी किए गए हैं, लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण 3500 किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) की सक्रिय भागीदारी है–उनके लेनदेन इस मंच के लिए दृढ़ समर्थन प्रदर्शित करते हैं। जनवरी 2024 तक इस प्लेटफॉर्म पर 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राशि का कारोबार हो चुका था।
इस सफल उपाय की पृष्ठभूमि साझा करना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि पचास के दशक में जब एपीएमसी की शुरुआत हुई थी, तो किसानों को संकटकालीन बिक्री से सुरक्षा की आवश्यकता थी।एपीएमसी को एमएसपी व्यवस्था के तहत राज्य एजेंसियों द्वारा ‘मूल्य खोज’ सुनिश्चित करने और खरीद के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। हालांकि, इस प्रक्रिया में, उन्होंने बिचौलिये-व्यापारी का एक विशेष वर्ग भी तैयार कर दिया, जिसके पास अधिसूचित कमान क्षेत्र के साथ विशेष मंडी में काम करने का लाइसेंस हुआ करता था।
हालांकि, जैसे-जैसे भारत एक आईटी महाशक्ति बना और कृषि, किसान के पास से उत्पादन के मार्केट मोड में चली गई, व्यापार के प्रतिबंधात्मक नियमों को बदलने की आवश्यकता महसूस हुई। एसएफएसी जैसे संस्थानों की स्थापना सीमांत और छोटे किसानों के व्यापार की शर्तों में सुधार लाने के लिए प्रौद्योगिकियों और वित्तीय साधनों का लाभ उठाने के लिए की गई थी। कृषि व्यवसाय उद्यमियों को उद्यम पूंजी निधि प्रदान करने से लेकर बुनियादी ढांचा तैयार करने तक, एसएफएसी ने एफपीओ की स्थापना, मार्केट इंटेलिजेंस, भंडारण और खरीद समर्थन की दिशा में नवोन्मेषी पहल की। कोई अचरज की बात नहीं कि ई-नाम की स्थापना का दायित्व भी एसएफएसी को सौंपा गया।
शुरुआत करने के लिए, कृषि मंत्रालय ने उन नियंत्रित मंडियों में उपकरण/बुनियादी ढांचे जैसे कंप्यूटर हार्डवेयर, इंटरनेट सुविधा, परख उपकरण आदि के लिए प्रति मंडी 30 लाख रुपये का अनुदान दिया जहां ई-मार्केट प्लेटफॉर्म की स्थापना होनी है। सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग सुविधाओं तथा बायो कंपोस्टिंग यूनिट जैसी अतिरिक्त बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए इसे 2017 में बढ़ाकर 75 लाख रुपये कर दिया गया। वहीं पहले तीन वर्षों में, लगभग 200 मंडियों को इसके दायरे में लाया गया था, मई 2020 तक 415 मंडियों, जुलाई 2022 तक 260 और मंडियों, मार्च 2023 तक 101 और मंडियों तथा पिछले कैलेंडर के अंत तक 28 मंडियों के साथ गति बढ़ी। यह संख्या हर तिमाही में बढ़ रही है!
नीति बनाना आसान हिस्सा है। वास्तविक और आईटी बुनियादी ढांचे का निर्माण अधिक कठिन है। सबसे कठिन काम है इसे जमीन पर कारगर बनाना। प्रारंभिक हैंडहोल्डिंग के लिए, एसएफएसी एक आईटी विशेषज्ञ (मंडी विश्लेषक) की पहचान करता है और उसका समर्थन करता है ताकि ई-नाम
के साथ जुड़ी प्रत्येक मंडी की एक वर्ष की अवधि के लिए प्रारंभ में लगातार मदद की जा सके। वे राज्य समन्वयकों को रिपोर्ट करते हैं, जिनमें से प्रत्येक 50 मंडियों का दिन-प्रतिदिन तालमेल बिठाते हैं। वे ई-नाम प्रणाली में सभी हितधारकों- किसानों, व्यापारियों, कमीशन एजेंटों और मंडी अधिकारियों को निःशुल्क प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भी जिम्मेदार हैं।
आगे क्या? अपनी उपलब्धियों पर संतुष्ट होने के बजाय, ई-नाम नए और उच्च मानक स्थापित कर रहा है। इसके संशोधित अधिदेश में किसानों को प्रतिस्पर्धी मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए एपीएमसी/विनियमित बाजार समिति मंडियों से परे मंच खोलकर ई-नाम का विस्तार और समेकन शामिल है। गोदाम आधारित बिक्री (डब्ल्यूबीएस) और ई-नाम के माध्यम से जोर दिया जा रहा है।आखिर में,यह मूल्य खोज और बेचने की स्वतंत्रता है जो किसान के लिए अधिक समृद्धि लाएगी।